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Tuesday, 17 January 2017

जैसी करनी वैसी भरनी

जैसी करनी वैसी भरनी

एक गाँव में एक वैध रहता था । वह चिकित्सा की विधा में दक्ष तो था ,  किन्तु उसका भाग्य अच्छा नहीं था । परमात्मा ने उसे विधा तो दी थी पर भाग्य उल्टा दिया था । वह जिस किसी की भी नाडी पर हाथ रखता था उसको यमराज के घर अवश्य जाना पड़ता था । वैध अपनी मनहूसियत के लिए चारो ओर प्रसिद्ध हो गया था । अमीर - गरीब छोटे - बडे सभी के कानों में यह बात पड चुकी थी कि जो भी व्यक्ति वैध के पास चिकित्सा कराने जाता है उसकी मृत्यु हो जाती है । अत: कोई बीमार आदमी दवा के लिए वैध के पास नहीं जाता था।

बेचारा वैध पूरे दिन रोगियों की राह देखता रहता था ।पर आने की कौन कहें, कोई रोगी उसके द्वार की ओर झांकता तक नहीं था । आखिर वह स्वयं रोगियों की खोज में इधर - उधर चक्कर लगाने लगा । कभी कोई रोगी मिल जाता तो कुछ आय हो जाती थी । नहीं तो खाली हाथ लौटना पड़ता था । जब कामकाज ही नहीं चलता था तो फिर रोटी कैसे चलती ? कभी - कभी वैध को भूखा ही सो जाना पड़ता था । 

संध्या का समय था । दिन भर चक्कर लगाने के बाद वह अपने घर की ओर लौट रहा था । उसे कहीं भी कोई रोगी नहीं मिला था । वह मन ही मन बड़ा दुखी था । और एक पुराने वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया तथा सुस्ताने लगा । सहसा उसकी दृष्टि वृक्ष के तनें के कोटर पर गई । उसने देखा कि कोटर में एक विषैला सर्प बड़ी ही  आराम से सो रहा है । 

वैध सर्प को देखकर मन ही मन सोचने लगा कि यदि यह सर्प किसी को डस लेता , तो वह अवश्य मुझसे अपना इलाज कराता और मुझे अच्छी आय हो सकती है । पर यह सर्प डसे तो किसे और कैसे डसे । वैध मन ही मन सोचने लगा।

कुछ दूरी पर कुछ लडके खेल रहे थे । लडकों को देखकर वैध को एक उपाय सुझ गया । जब उपाय सुझ गया तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ । वह कुछ क्षणों तक विचार करता रहा । फिर लडकों के पास जाकर बोला :- उस पुराने वृक्ष के कटोर में एक मैना सो रही है । अगर तुम में से कोई उसे पकडना चाहता है तो मेरे साथ चलकर उसे पकड सकता है ।

एक चतुर बालक बोल उठा :-  काका जी !  मै उस मैना को पकडकर पालूंगा । चलिए , मुझे दिखा दीजिए ।

वैध यही तो चाहता था । वह लडके को साथ लेकर वृक्ष के नीचे गया और उँगली से कोटर की ओर इशारा करते हुए बोला :- मैना इसी के भीतर सो रही है । 

लडके ने बिना कोटर की ओर देखें हुए उसके भीतर हाथ डाल दिया और जो कुछ हाथ में आया उसको बाहर निकाल लिया । हाथ बाहर निकालने पर लडके ने बड़े आश्चर्य से देखा कि उसके हाथ में मैना नहीं काले सर्प की गर्दन है । लडका डर गया । उसने झट साँप को फेंक दिया । संयोग की बात , साँप वैध के सिर पर जा गिरा और उसके गले में लिपट गया ।

अब घबराने की बारी वैध की थी । उसनें सर्प को गले से निकाल फेकने का प्रयत्न किया पर सर्प ने उसे डस लिया । सर्प बडा विषैला था । उसके विष से शीघ्र ही वैध की मृत्यु हो गयी । 

वैध ने अपने स्वार्थ के लिए लडके के साथ बुराई करने की बात सोची थी पर लडके की बुराई तो नहीं हुई , बल्कि वैध को उसके बुरे कर्म का फल अवश्य मिल गया  

किसी ने ठीक कहा है जो जस करें, सो तस फल चाखा।

मेहनत का मीठा फल

मेहनत का मीठा फल


एक गाँव में दीनदयाल नाम का एक किसान रहता था , गुजर - बसर के लिए उसके पास कुछ जमीन थी ।जिससे वह मेहनत करके अपना जीवन चला लेता था ।उसका एक लडका था , नाम था लखन । वह बड़ा आलसी प्रवृति का था । काम करना उसे जरा भी नहीं भाता था । दीनदयाल उसे खूब समझाता पर उस पर उसकी बातों का कोई असर नहीं होता था । लडका जब बड़ा हो गया तो दीनदयाल ने सोचा चलो अब बड़ा हो गया है । इसकी शादी कर दी जाए । शायद शादी के बाद इसकी आदत में सुधार आ जायें और एक दिन दीनदयाल ने उसका विवाह कर दिया । 

पत्नी घर आ गयी पर फिर भी लखन की आदत में सुधार न हुआ । अपने इकलौते पुत्र को समझाते - समझाते आखिर एक दिन दीनदयाल ही दुनिया से चल बसा । तब भी लखन की जिन्दगी में कोई सुधार नहीं आया ।उसकी पत्नी भी उसे खूब समझाती पर वह अपनी आदत से बाज न आया । क्योंकि मुफ़्त की रोटियाँ खाने की जो आदत उसे लगी थी। उल्टा वह पत्नी से ही झगड़ा कर बैठता था । 

आखिर एक दिन उसकी पत्नी भी उसे छोड़कर मायके चली गयी । पत्नी के जाने के बाद तो लखन खेतो को बेच - बेचकर कुछ दिन मजे से रहा । अब कुछ खेत ही बच गए जो एक साहूकार के पास गिरवी रखें थे । छुड़ाने के लिए उसके पास पैसे भी न थे । उसकी स्थिति एक दम दयनीय हो गई । तब उसने सोचा चलो कहीं दूसरी जगह जाया जाए। शायद वहां कुछ खाने का मिल जाएँ। इसी बहाने उसनें गाँव छोड़ने का इरादा कर लिया । 

एक दिन वह इसी इरादे से निकल पड़ा । गर्मी का दिन था । चलते - चलते  दोपहर हो गई । भूख के मारे उसका बुरा हाल था । कुछ दूर जाने के पश्चात एक गाँव के पास एक कुटिया बनी हुई थी । वहाँ एक साधु आसान लगाए बैठा था । लखन ने सोचा चलो साधु की कुटिया में ही कुछ विश्राम कर लिया जाएं। ऐसा सोचकर लखन साधु की कुटिया में पहुँच गया । साधु ने एक अजनबी को अपनी कुटिया में आते देखा तो बड़े आदर से बिठाया । कुछ फल खाने को दिया और पूछा , भई इतनी दोपहरी मे कहा जा रहे हो ?  बड़े थके मालूम पडते हो । 

लखन ने अपनी सारी दास्तान साधु से कह सुनाई । साधु समझ गया यह आलसी है और काम से जी चुराता है । साधु ने सोचा इसे कैसे समझाया जायें,  तभी उनकी नज़र कुछ चीटियों पर पड़ी जो फल के छोटे से टुकड़े को ले जा रही थी । अचानक साधु ने मन में विचार आया क्यों न इसी से इसकी समस्या का हल किया जाएं ।

ऐसा सोचकर साधु ने लखन से चीटियों की ओर इशारा करते हुए कहा -:- इन्हें देख रहे हो?  ये क्या कर रही है ? 

लखन ने कहा चीटियाँ कुछ चीजों को ले जा रही हैं।

साधु ने कहा -: जब इतनी छोटी - छोटी चीटियाँ भी बिना मेहनत के नहीं खाते , फिर तुम्हारे पास तो इतना बड़ा शरीर है , जमीन है । यदि तुम मेहनत करोगे तो तुम्हारा जीवन आनंद से बीत सकता है ।

साधु के वचन का उसपर गहरा प्रभाव पड़ा और लखन लौट चला अपने भविष्य को सँवारने को । फिर तो लखन ने गाँव में मेहनत मजदूरी कर कुछ पैसे इकट्ठा कर अपने खेत साहूकार से छुडा  कर सुखमय जीवन बिताने लगा ।तब उसके बदलाव को देखकर उसकी पत्नी भी वापस आ गई । 


सिख -:  मेहनत का फल हमेशा ही मीठा होता है बीना मेहनत के कुछ प्राप्त नहीं होता  मेहनत करने पर उसका फल भी हमें अवश्य मिलता है

Monday, 16 January 2017

विश्वासघात का फल

विश्वासघात का फल

प्राचीन समय की बात है। धर्मपाल सिंह नामक एक व्यक्ति था। वह एक छोटी रियायत का मालिक था। वह बड़े नेक स्वभाव का था । उसे शिकार करने का बड़ा शौक था। वह प्रतिदिन हिरनों का शिकार किया करता था।

एक बार जंगल में उसे काला हिरन दिखाई दिया। उसको मारने के लिए ठाकुर धर्मपाल सिंह ने अपना घोड़ा उसके पीछे दौड़ा दिया। वह हिरन छिपता-छिपाता भागता हुआ दूर निकल गया। ठाकुर धर्मपाल उस हिरन को मारने में असफल रहे।

अँधेरा होने लगा था। ठाकुर को प्यास भी लग रही थी। अब ठाकुर हिरन का पीछा छोड़ पानी की तलाश करने लगा। उसे दूर एक तालाब दिखाई दिया। वह घोड़े से उतरा और घोड़े को वहीं पेड़ से बाँधकर उसनें तालाब का पानी पिया। पानी पीकर ठाकुर धर्मपाल जैसे ही मुड़ा, देखता क्या है कि एक शेर शिघ्रता से उधर ही आ रहा था। शेर के डर से घोड़ा रस्सी तोड़ कर भाग गया था। अब ठाकुर को अपनी जान बचती न देख फौरन पास के पेड़ पर चढ़ गया।

उस पेड़ पर पहले से ही एक भालू बैठा था। ठाकुर उस भालू को देखकर बीच में ही रूक गया। उसनें मन में सोचा पेड़ पर चढता हूँ वह भालू खा जायेगा। यदि पेड़ से नीचे उतरता हूँ , तो शेर जिन्दा नहीं छोडेगा। अब ठाकुर त्रिशंकु की भातिं बीच में ही रूक गया।

ठाकुर को अपने से डरा जान , भालू ने कहा- ऐ भाई तुम मेरी शरण में आये हो ,मेरा फर्ज है कि में तुम्हारी रक्षा करूँ। अत: निडर होकर उपर आ जाओ। 

भालू के वचन सुनकर ठाकुर पेड़ पर ऊपर चढ़ गया। शेर भी आकर पेड़ के नीचे रूक  गया । वह जाने का नाम ही नहीं ले  रहा था। रात हो गयी थी, थका होने के कारण ठाकुर को नींद आने लगी थी। तब भालू ने कहा - ऐसे नीचे गिर जाओगे, अत: निडर होकर मेरी गोद में सो जाओ। ठाकुर ने ऐसा ही किया । शीघ्र ही वह गहरी नींद में सो गया।

ठाकुर को सोया देख शेर ने भालू से कहा- तुमनें शत्रु को अपनी गोद में सुलाया हुआ है। दिन निकलते ही वह तुम्हें मार देगा। अत: तुम इसे नीचे गिरा दो, ताकि मैं उसे मारकर अपनी भूख मिटाकर घर जाऊँ।

तब भालू ने कहा- ऐ शेर जो शरण में आए हुए के साथ विश्वासघात करता है, वह जीवन भर घोर नर्क में जलता है। मैं इसे नीचे नहीं गिराऊंगा । शेर निरूत्तर हो गया।

 थोड़ी देर  बाद ठाकुर नींद से जागें । तब भालू ने कहा ऐ दोस्त अब मैं सो जाऊ तुम सावधान रहना । इतना कहकर भालू सो गया ।

भालू को सोया देखकर शेर ने ठाकुर से कहा  -:  इस भालू पर तुमनें विश्वास कैसे कर लिया । दिन निकलते ही यह तुमकों मार देगा । अत: तुम इसको नीचे गीरा दो ताकि मै इसे खाकर अपने घर जाऊँ ।

ठाकुर ने क्षण भर सोचा शायद शेर ठीक कह रहा है । यह सोच कर भालू को जोर से नीचे गिराया । किन्तु भालू ने शीघ्र ही पेड की शाखाओं को पकड लिया । भालू नीचे गिरने से बच गया  । उसी समय भालू ने कहा - हे पापी , तुने मेरे साथ विश्वासघात किया है । अत: पागल होकर जंगल में भटक।

दिन निकल रहा था । शेर भी पेड के नीचे से चला गया था । ठाकुर धर्मपाल सिंह पागल होकर जंगल में भटकने लगा ।

जब दुसरे दिन ठाकुर अपनी हवेली नहीं गया जब नौकरो ने जंगल में ढूँढना शुरू किया । नौकर देखता क्या है ठाकुर साहिब पागल होकर इधर - उधर भटक रहे है । उन्हें घर लाया गया । ठाकुर की माता ने ऐलान किया जो मेरे पुत्र को ठीक करेगा उसे मुंह मांगा इनाम दिया जायेगा । ठाकुर साहब के ही एक विश्वासपात्र नौकर की लड़की ने यह ऐलान सुना और वह ठाकुर की हवेली में पहुँच गयी ।

लडकी ने ठाकुर की माता से कहा में इन्हें ठीक कर दूंगीं ।इन्हें श्राप लगा है ।  लड़की ने ठाकुर को ठीक करने के लिए पहला उपदेश सुनाया - समुद्र का किनारा हो या गंगा यमुना का संगम यदि इन जगहो पर ब्रह्मा को मार दिया जायें तो वह भी पाप से छुट सकता है ! किन्तु मित्र के साथ विश्वासघात करने वाला मनुष्य पाप से मुक्त नहीं हो सकता ।

इससे ठाकुर का आधा पागलपन दूर हो गया । फिर उस लड़की ने दूसरा उपदेश सुनाया -  जो मित्र के साथ विश्वासघात करता है । वह नीच है और वह तीन जन्म तक घोर नरक में सडता है । इतना सुनते ही ठाकुर धर्मपाल सिंह का पागलपन दूर हो गया और वह अपनी पहली अवस्था में आ गये।


सिख --:  दोस्तो हमें कभी भी किसी भी हालात में दोस्त के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए।