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Sunday, 8 January 2017

चमत्कारी अँगूठी

चमत्कारी अँगूठी

यमुना नदी के किनारे रतनपुर गाँव में प्रकाश नाम का एक आदिवासी लडका रहता था। जब वह छोटा था, तभी उसके माता-पिता गुजर गये थे। प्रकाश बहुत होशियार, दयालु और महनती था। पिता की सम्पत्ति के रूप में उसे एक नाव, एक जाल और रहने को एक झोपड़ी ही मिली थीं। वह यमुना नदी में जाल डालता, मछली पकडता और उन्हें शहर में बेचकर अपना खर्च चलाता। अपने काम से थोड़ा समय निकालकर वह थोडा पढ लिख भी लेता था।

एक दिन की बात है। रोज़ की तरह एक शाम जब प्रकाश ने नदी में फैलाया अपना जाल समेटा , तो उसमें मछली तो एक भी नहीं थी, बल्कि एक बड़ा सा कछुआ फँसा हुआ था। कछुए को जाल में फँसा देख उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। इतना बड़ा कछुआ तो उसनें पहले कभी नहीं देखा था। 

कछुए को किनारे की तरफ करके वह घर जाने की तैयारी करने लगा। तभी प्रकाश ने देखा कि कछुआ एक ऋषि के रूप में परिवर्तित हो चुका है। यह देख प्रकाश एकदम डर गया। लेकिन ऋषि ने जो कहा उससे प्रकाश का डर जाता रहा। ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा- प्रकाश में तुम्हारा बहुत आभार मानता हूँ। तुम्हारी वजह से ही आज मै ऐसे श्राप से मुक्त होकर अपने वास्तविक रूप में आ सका हूँ ,तुम्हारे इस उपकार के बदले में तुम्हें कुछ दूँगा। यह कहकर ऋषि ने प्रकाश के हाथ पर एक अँगूठी रख दी और कहा- इस अँगूठी में विषेश गुण है। इसे पहनकर तुम जो काम करोगे उसी में तुम्हें सफलता प्राप्त होगी। इतना कह ऋषि घने जंगल की ओर बढ़ गये।

प्रकाश ने उस अँगूठी को सँभाल कर रख लिया। सोचा- जरूरत पडने पर मैं इस अँगूठी को पहनूँगा। उस वर्ष वर्षा  के मौसम में नदी में खूब बाढ़ आ गई। नदी के किनारे बसे घर और खेत पानी में डूब गये। इस तबाही से फसल बरबाद हो गयी । लोग भूखों मरने लगे। प्रकाश का घर भी पानी में डूब गया। 

प्रकाश ने वह अँगूठी पहनी और अपनी नाव से डूबते लोगों को बचाने लगा। अँगूठी का प्रभाव हुआ । प्रकाश को अपने काम में भरपूर सफलता मिली। उसकी नाव के सहारे आधे से ज्यादा गाँव वाले सुरक्षित स्थान पर पहुँच गये। सब लोगों ने प्रकास का बहुत अहसान माना। अँगूठी के प्रभाव से प्रकाश ने सभी के लिए खाने पीने का प्रबंधन किया। फिर उसनें जंगल से लकड़ी काट-काट कर गाँव वालों के लिए सुन्दर-सुन्दर घरों का निर्माण किया। सभी लोगों के रहने की व्यवस्था हुई। प्रकाश के इस काम से वह गाँव वालों का आँख का तारा बन गया। उसकी लोकप्रियता बढती गई। आसपास के गाँवों में भी उसकी इज्जत होने लगी।

प्रकाश की लोकप्रियता धिरे-धिरे उस इलाके के राजा तक पहुँच गई। उसनें प्रकाश को अपने पास बुलाया। पूछा-; तुमनें अकेले ही सारे गाँव को तबाही से बचाया। उनके लिए घर बनाकर उन्हें फिर से बसाया। इतना सबकुछ तुमनें अकेले कैसे किया?

प्रकाश ने राजा को अँगूठी प्राप्ति की सारी घटना सुना दी और कहा -: इसी अँगूठी के प्रभाव से में यह सारा काम सफलतापूर्वक कर पाया हूँ। अँगूठी के बारे में यह सब सुन राजा सोचने लगा-क्यों न यह अँगूठी मैं प्राप्त कर लूँ और इसे पहनकर पडोसी राजा से युद्ध करूँ,जिससे मुझे विजय मिलेगी और शत्रु सेना की हार होगी।

वह  प्रकाश से बोला- तुम यह अँगूठी मुझे दे दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए मांग लो।

आप तो राजा है सबका भला ही करते है। आप इस अँगूठी को ले लिजिए। यह आपके काम आयेगी। इसके बदले मुझे कुछ नहीं चाहिए। प्रकाश ने कहा।

राजा ने अँगूठी ले ली । कुछ दिन बाद राजा ने अपने पडोसी राज्य पर हमला बोल दिया। भीषण युद्ध हुआ । दोनों तरफ से भयंकर मारकाट हुई। युद्ध में राजा बुरी तरह घायल हो गया। वह बुरी तरह हार भी गया था। उसे प्रकाश पर बहुत गुस्सा आया। उसनें सोचा प्रकाश ने मुझे बेवकूफ बनाया है। यह सोच कर उसनें प्रकाश को कैद खाने में डलवा दिया।

रात को राजा सो रहा था। उसे एक सपना आया। सपने में एक ऋषि राजा से कह रहे थे-राजन, तुमनें बेकसूर प्रकाश को कैद खाने में डालकर अच्छा नहीं किया है। उसे तत्काल छोड़ दो । यह अँगूठी बहुत चमत्कारी है। लेकिन इसका चमत्कार लोगों की भलाई करने मे ही फलता है। प्रकाश ने इस अँगूठी का उपयोग लोगों की सहायता के लिए किया था। इस कारण उसे अपने काम में सफलता मिली। किन्तु तुमनें इसका प्रयोग स्वयं के भले के लिए तथा युद्ध जैसे विनाशकारी कार्य के लिए किया। इसी कारण अँगूठी का प्रभाव नहीं हुआ।

सपना देख राजा हडबडा कर जाग उठा। उसने सपने की बात पर विचार किया। उसे अपनी भूल मालूम हुई। उसनें उसी समय प्रकाश को कैद खाने से इज्जत के साथ अपने पास बुलाया। उसे अँगूठी वापस लोटा दी । दूसरे दिन राजा ने उसे खूब धन देकर उसे विदा किया। अँगूठी लेकर प्रकाश फिर से लोगों की भलाई के कार्यों में जुट गया



सिख-: लोगों की भलाई के लिए किये गए कार्यों में हमेशा सफलता प्राप्त होती है

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