जाड़े का मौसम था। एक आदमी चादर ओढकर पैदल अपने गाँव जा रहा था। उसी समय हवा और सूरज में बहस छिड़ गई। दोनों में से हर एक अपने आप को बड़ा तथा दूसरे को छोटा बताने लगा।
हवा ने डींग मारते हुए कहा- मुझमें अधिक शक्ति हैं में फूँक मारकर कुछ भी उड़ा सकती हूँ।
सूरज ने शांत भाव से कहा - मुझसे बहस मत करो मुझमैं बहुत गरमी हैं । मैं कुछ भी जला कर राख कर सकता हूँ।
दोनों मैं ठन गई परंतु निणर्य कैसे हो ?
तभी दोनों की नज़र उस आदमी पर पड़ी जो चादर ओढ कर रास्ते पर जा रहा था। दोनों में सहमती हुई की जो भी उस राहगीर की चादर उतरवा देगा वही अधिक बलवान होगा
पहले हवा की बारी आई। हवा जोर से बहने लगी। उसने पूरी कोशिश की कि अपनी ताकत से उस आदमी की चादर उतरवा दे।
परंतु उस आदमी ने चादर को और ज्यादा कसकर पकड़ लिया।
हवा इतनी तेज चलने लगी कि आँधी आ गई । परंतु उस आदमी की चादर को न उतरवा सकी।
अब सूरज की बारी आई । सूरज तेजी से चमकने लगा । धीरे-धीरे उसकी धूप में अधिक गरमी आ गई। गरमी लगने से उस आदमी के पसीने छूटने लगे।
वह अधिक गरमी न सह सका विवश होकर उसनें अपनी चादर उतार दी।
सिख-़़़ बच्चों अहंकार बहुत बुरी चीज हैं हमें अहंकार नहीं करना चाहिए कभी भी दूसरे को अपने से कम नहीं समझना चाहिए
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