ने की का फल
काफी समय पहले की बात है। किसी नगर का राजा विक्रम सिंह बहुत ही क्रूर था ।प्रजा अपने निर्दयी राजा से बेहद दुखी थी ।खासकर राजा के सेवक तो राजा के अत्याचारों से तंग आ चुके थे । राजा श्यामू सेवक को तो अक्सर छोटी-छोटी गलतियों पर सजा दिया करता था। फिर भी श्यामू राजा को खुश करने के लिए अधिक से अधिक परिश्रम करता था । एक दिन राजा ने श्यामू को बिना किसी कारण सौ कोडो की सजा सुना दी । अपने इस नरकिय जीवन से श्यामू काफ़ी परेशान हो गया था
क दिन अवसर पाकर वह जंगल में भाग गया। भागते-भागते वह थक गया था । इसीलिए आराम करने के लिए वह एक गुफा में घुस गया ओर लेट गया। कुछ ही समय में उसे नींद आ गयी । तभी एक आवाज़ सुन वह चौककर उठा। उसनें गुफा के बाहर एक शेर को आते हुए देखा। शेर दायाँ पंजा उपर उठाये हुए था । श्यामू समझ गया उसके पंजें में कुछ तकलीफ है । उसनें शेर के पास जाकर उसका पंजा अपने हाथ में उठाकर देखा। शेर के पंजे में एक कांटा चुभा था । उसने कांटे को खींच कर बाहर निकाल दिया । शेर को दर्द से आराम मिल गया । वह श्यामू को कोई हानि पहुचाये बगैर जंगल में चला गया
एक माह के अन्दर ही श्यामू को पकड लिया गया। राजा के दरबार में पेश किया गया। राजा ने उसको भुखे शेर के आगे डाल देने का हुक्म सुना दिया
जब श्यामू को दो दिन पहले पकड़े गये शेर के पिंजरे में डाला गया। तो वहाँ सैकड़ों लोगों की भीड़ थी। शेर दौडकर श्यामू के पास गया ओर उसके पैर चाटने लगा। श्यामू भी शेर को पहचान गया। शेर के इस व्यवहार को देख कर खुश हुआ। यह वहीं शेर था । जिसके पंजे से श्यामू ने कांटा निकाला था । शेर ने श्यामू को पहचान लिया और उसके पैरों को चाटकर उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट की थी।
इस घटना का क्रूर राजा पर गहरा असर हुआ। श्यामू को पिंजरे से बाहर निकाला गया। राजा ने उससे पूछा कि शेर ने उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया। तब श्यामू ने जंगल की सारी घटना राजा को बता दी । घटना सुन राजा में परिवर्तन आ गया।
उसने महसूस किया कि शेर जैसे क्रूर पशु ने भी श्यामू के उपकार के लिए कृतज्ञता प्रकट की है। उसे भी अपने सेवकों की सेवाओं की कद्र करनी चाहिए और प्रजा को ज्यादा से ज्यादा सुखी बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
उस दिन से राजा नेक और दयालु बन गया । वह अपने सेवको के साथ नम्रता और दया का व्यवहार करने लगा । अब वह सेवकों के कपड़े भोजन और उनकी तनख्वाह का भी ध्यान रखने लगा ।प्रजा को भी सभी करो से मुक्त कर दिया
सिख-: इस कहानी से हमें सिख मिलती है कि हमें परोपकार का बदला परोपकार से ही चुकाना चाहिए
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