मेहनत का मीठा फल
एक गाँव में दीनदयाल नाम का एक किसान रहता था , गुजर - बसर के लिए उसके पास कुछ जमीन थी ।जिससे वह मेहनत करके अपना जीवन चला लेता था ।उसका एक लडका था , नाम था लखन । वह बड़ा आलसी प्रवृति का था । काम करना उसे जरा भी नहीं भाता था । दीनदयाल उसे खूब समझाता पर उस पर उसकी बातों का कोई असर नहीं होता था । लडका जब बड़ा हो गया तो दीनदयाल ने सोचा चलो अब बड़ा हो गया है । इसकी शादी कर दी जाए । शायद शादी के बाद इसकी आदत में सुधार आ जायें और एक दिन दीनदयाल ने उसका विवाह कर दिया ।
पत्नी घर आ गयी पर फिर भी लखन की आदत में सुधार न हुआ । अपने इकलौते पुत्र को समझाते - समझाते आखिर एक दिन दीनदयाल ही दुनिया से चल बसा । तब भी लखन की जिन्दगी में कोई सुधार नहीं आया ।उसकी पत्नी भी उसे खूब समझाती पर वह अपनी आदत से बाज न आया । क्योंकि मुफ़्त की रोटियाँ खाने की जो आदत उसे लगी थी। उल्टा वह पत्नी से ही झगड़ा कर बैठता था ।
आखिर एक दिन उसकी पत्नी भी उसे छोड़कर मायके चली गयी । पत्नी के जाने के बाद तो लखन खेतो को बेच - बेचकर कुछ दिन मजे से रहा । अब कुछ खेत ही बच गए जो एक साहूकार के पास गिरवी रखें थे । छुड़ाने के लिए उसके पास पैसे भी न थे । उसकी स्थिति एक दम दयनीय हो गई । तब उसने सोचा चलो कहीं दूसरी जगह जाया जाए। शायद वहां कुछ खाने का मिल जाएँ। इसी बहाने उसनें गाँव छोड़ने का इरादा कर लिया ।
एक दिन वह इसी इरादे से निकल पड़ा । गर्मी का दिन था । चलते - चलते दोपहर हो गई । भूख के मारे उसका बुरा हाल था । कुछ दूर जाने के पश्चात एक गाँव के पास एक कुटिया बनी हुई थी । वहाँ एक साधु आसान लगाए बैठा था । लखन ने सोचा चलो साधु की कुटिया में ही कुछ विश्राम कर लिया जाएं। ऐसा सोचकर लखन साधु की कुटिया में पहुँच गया । साधु ने एक अजनबी को अपनी कुटिया में आते देखा तो बड़े आदर से बिठाया । कुछ फल खाने को दिया और पूछा , भई इतनी दोपहरी मे कहा जा रहे हो ? बड़े थके मालूम पडते हो ।
लखन ने अपनी सारी दास्तान साधु से कह सुनाई । साधु समझ गया यह आलसी है और काम से जी चुराता है । साधु ने सोचा इसे कैसे समझाया जायें, तभी उनकी नज़र कुछ चीटियों पर पड़ी जो फल के छोटे से टुकड़े को ले जा रही थी । अचानक साधु ने मन में विचार आया क्यों न इसी से इसकी समस्या का हल किया जाएं ।
ऐसा सोचकर साधु ने लखन से चीटियों की ओर इशारा करते हुए कहा -:- इन्हें देख रहे हो? ये क्या कर रही है ?
लखन ने कहा चीटियाँ कुछ चीजों को ले जा रही हैं।
साधु ने कहा -: जब इतनी छोटी - छोटी चीटियाँ भी बिना मेहनत के नहीं खाते , फिर तुम्हारे पास तो इतना बड़ा शरीर है , जमीन है । यदि तुम मेहनत करोगे तो तुम्हारा जीवन आनंद से बीत सकता है ।
साधु के वचन का उसपर गहरा प्रभाव पड़ा और लखन लौट चला अपने भविष्य को सँवारने को । फिर तो लखन ने गाँव में मेहनत मजदूरी कर कुछ पैसे इकट्ठा कर अपने खेत साहूकार से छुडा कर सुखमय जीवन बिताने लगा ।तब उसके बदलाव को देखकर उसकी पत्नी भी वापस आ गई ।
सिख -: मेहनत का फल हमेशा ही मीठा होता है बीना मेहनत के कुछ प्राप्त नहीं होता मेहनत करने पर उसका फल भी हमें अवश्य मिलता है
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