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Monday, 16 January 2017

विश्वासघात का फल

विश्वासघात का फल

प्राचीन समय की बात है। धर्मपाल सिंह नामक एक व्यक्ति था। वह एक छोटी रियायत का मालिक था। वह बड़े नेक स्वभाव का था । उसे शिकार करने का बड़ा शौक था। वह प्रतिदिन हिरनों का शिकार किया करता था।

एक बार जंगल में उसे काला हिरन दिखाई दिया। उसको मारने के लिए ठाकुर धर्मपाल सिंह ने अपना घोड़ा उसके पीछे दौड़ा दिया। वह हिरन छिपता-छिपाता भागता हुआ दूर निकल गया। ठाकुर धर्मपाल उस हिरन को मारने में असफल रहे।

अँधेरा होने लगा था। ठाकुर को प्यास भी लग रही थी। अब ठाकुर हिरन का पीछा छोड़ पानी की तलाश करने लगा। उसे दूर एक तालाब दिखाई दिया। वह घोड़े से उतरा और घोड़े को वहीं पेड़ से बाँधकर उसनें तालाब का पानी पिया। पानी पीकर ठाकुर धर्मपाल जैसे ही मुड़ा, देखता क्या है कि एक शेर शिघ्रता से उधर ही आ रहा था। शेर के डर से घोड़ा रस्सी तोड़ कर भाग गया था। अब ठाकुर को अपनी जान बचती न देख फौरन पास के पेड़ पर चढ़ गया।

उस पेड़ पर पहले से ही एक भालू बैठा था। ठाकुर उस भालू को देखकर बीच में ही रूक गया। उसनें मन में सोचा पेड़ पर चढता हूँ वह भालू खा जायेगा। यदि पेड़ से नीचे उतरता हूँ , तो शेर जिन्दा नहीं छोडेगा। अब ठाकुर त्रिशंकु की भातिं बीच में ही रूक गया।

ठाकुर को अपने से डरा जान , भालू ने कहा- ऐ भाई तुम मेरी शरण में आये हो ,मेरा फर्ज है कि में तुम्हारी रक्षा करूँ। अत: निडर होकर उपर आ जाओ। 

भालू के वचन सुनकर ठाकुर पेड़ पर ऊपर चढ़ गया। शेर भी आकर पेड़ के नीचे रूक  गया । वह जाने का नाम ही नहीं ले  रहा था। रात हो गयी थी, थका होने के कारण ठाकुर को नींद आने लगी थी। तब भालू ने कहा - ऐसे नीचे गिर जाओगे, अत: निडर होकर मेरी गोद में सो जाओ। ठाकुर ने ऐसा ही किया । शीघ्र ही वह गहरी नींद में सो गया।

ठाकुर को सोया देख शेर ने भालू से कहा- तुमनें शत्रु को अपनी गोद में सुलाया हुआ है। दिन निकलते ही वह तुम्हें मार देगा। अत: तुम इसे नीचे गिरा दो, ताकि मैं उसे मारकर अपनी भूख मिटाकर घर जाऊँ।

तब भालू ने कहा- ऐ शेर जो शरण में आए हुए के साथ विश्वासघात करता है, वह जीवन भर घोर नर्क में जलता है। मैं इसे नीचे नहीं गिराऊंगा । शेर निरूत्तर हो गया।

 थोड़ी देर  बाद ठाकुर नींद से जागें । तब भालू ने कहा ऐ दोस्त अब मैं सो जाऊ तुम सावधान रहना । इतना कहकर भालू सो गया ।

भालू को सोया देखकर शेर ने ठाकुर से कहा  -:  इस भालू पर तुमनें विश्वास कैसे कर लिया । दिन निकलते ही यह तुमकों मार देगा । अत: तुम इसको नीचे गीरा दो ताकि मै इसे खाकर अपने घर जाऊँ ।

ठाकुर ने क्षण भर सोचा शायद शेर ठीक कह रहा है । यह सोच कर भालू को जोर से नीचे गिराया । किन्तु भालू ने शीघ्र ही पेड की शाखाओं को पकड लिया । भालू नीचे गिरने से बच गया  । उसी समय भालू ने कहा - हे पापी , तुने मेरे साथ विश्वासघात किया है । अत: पागल होकर जंगल में भटक।

दिन निकल रहा था । शेर भी पेड के नीचे से चला गया था । ठाकुर धर्मपाल सिंह पागल होकर जंगल में भटकने लगा ।

जब दुसरे दिन ठाकुर अपनी हवेली नहीं गया जब नौकरो ने जंगल में ढूँढना शुरू किया । नौकर देखता क्या है ठाकुर साहिब पागल होकर इधर - उधर भटक रहे है । उन्हें घर लाया गया । ठाकुर की माता ने ऐलान किया जो मेरे पुत्र को ठीक करेगा उसे मुंह मांगा इनाम दिया जायेगा । ठाकुर साहब के ही एक विश्वासपात्र नौकर की लड़की ने यह ऐलान सुना और वह ठाकुर की हवेली में पहुँच गयी ।

लडकी ने ठाकुर की माता से कहा में इन्हें ठीक कर दूंगीं ।इन्हें श्राप लगा है ।  लड़की ने ठाकुर को ठीक करने के लिए पहला उपदेश सुनाया - समुद्र का किनारा हो या गंगा यमुना का संगम यदि इन जगहो पर ब्रह्मा को मार दिया जायें तो वह भी पाप से छुट सकता है ! किन्तु मित्र के साथ विश्वासघात करने वाला मनुष्य पाप से मुक्त नहीं हो सकता ।

इससे ठाकुर का आधा पागलपन दूर हो गया । फिर उस लड़की ने दूसरा उपदेश सुनाया -  जो मित्र के साथ विश्वासघात करता है । वह नीच है और वह तीन जन्म तक घोर नरक में सडता है । इतना सुनते ही ठाकुर धर्मपाल सिंह का पागलपन दूर हो गया और वह अपनी पहली अवस्था में आ गये।


सिख --:  दोस्तो हमें कभी भी किसी भी हालात में दोस्त के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए।

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