शब्द और पंख
राजू और राम दोनों अच्छे मित्र थे। दोनों एक साथ खेलते और पढतें थे। एक बार राजू ने अपने मित्र राम को बहुत बुरा-भला कह दिया । लेकिन बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। परन्तु उसकी समझ में नहीं आ रहा था ।। कि वह अपनी गलती का पश्र्ताप कैसे करें।
इस समाधान के लिए वह अपनी दादीजी के पास गया। और उसनें अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा ताकि उसके मन का भार हल्का हो सके।
दादी ने राजू को खुब सारे पंख देकर कहा तुम पहले इन पंख को बाहर बखेर कर आओ । राजू पंख बखेर कर वापस आयागया दादी ने उसके आते ही कहा- सुनों राजू अब उन पंख को इकट्ठा करके वापस ले आओ।
राजू बाहर गया और देखा तो पंख हवा से इधर-उधर उड़ गये थे । उन्हें इकट्ठा करना मुसकिल था ।
राजू खाली हाथ वापस आ गया। दादी ने पूछा पंख नहीं लाए राजू ने कहा पंख हवा से उड गए है फिर दादी ने समझाया ठिक इसी तरह तुम्हारे शब्दों के साथ होता है।
तुम बड़ी आसानी से किसी को बिना सोचे समझें कह सकते हो लेकिन एक बात कह देने के बाद वो शब्द वापस नहीं लिये जा सकते। ठीक वैसे ही जैसे एक बार बिखरे पंख वापस नहीं समेटे जा सकते ।
सिख- हमें कभी भी किसी से कूछ कहने से पहले सोच विचार कर बोलना चाहिए।
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