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Tuesday, 17 January 2017

जैसी करनी वैसी भरनी

जैसी करनी वैसी भरनी

एक गाँव में एक वैध रहता था । वह चिकित्सा की विधा में दक्ष तो था ,  किन्तु उसका भाग्य अच्छा नहीं था । परमात्मा ने उसे विधा तो दी थी पर भाग्य उल्टा दिया था । वह जिस किसी की भी नाडी पर हाथ रखता था उसको यमराज के घर अवश्य जाना पड़ता था । वैध अपनी मनहूसियत के लिए चारो ओर प्रसिद्ध हो गया था । अमीर - गरीब छोटे - बडे सभी के कानों में यह बात पड चुकी थी कि जो भी व्यक्ति वैध के पास चिकित्सा कराने जाता है उसकी मृत्यु हो जाती है । अत: कोई बीमार आदमी दवा के लिए वैध के पास नहीं जाता था।

बेचारा वैध पूरे दिन रोगियों की राह देखता रहता था ।पर आने की कौन कहें, कोई रोगी उसके द्वार की ओर झांकता तक नहीं था । आखिर वह स्वयं रोगियों की खोज में इधर - उधर चक्कर लगाने लगा । कभी कोई रोगी मिल जाता तो कुछ आय हो जाती थी । नहीं तो खाली हाथ लौटना पड़ता था । जब कामकाज ही नहीं चलता था तो फिर रोटी कैसे चलती ? कभी - कभी वैध को भूखा ही सो जाना पड़ता था । 

संध्या का समय था । दिन भर चक्कर लगाने के बाद वह अपने घर की ओर लौट रहा था । उसे कहीं भी कोई रोगी नहीं मिला था । वह मन ही मन बड़ा दुखी था । और एक पुराने वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया तथा सुस्ताने लगा । सहसा उसकी दृष्टि वृक्ष के तनें के कोटर पर गई । उसने देखा कि कोटर में एक विषैला सर्प बड़ी ही  आराम से सो रहा है । 

वैध सर्प को देखकर मन ही मन सोचने लगा कि यदि यह सर्प किसी को डस लेता , तो वह अवश्य मुझसे अपना इलाज कराता और मुझे अच्छी आय हो सकती है । पर यह सर्प डसे तो किसे और कैसे डसे । वैध मन ही मन सोचने लगा।

कुछ दूरी पर कुछ लडके खेल रहे थे । लडकों को देखकर वैध को एक उपाय सुझ गया । जब उपाय सुझ गया तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ । वह कुछ क्षणों तक विचार करता रहा । फिर लडकों के पास जाकर बोला :- उस पुराने वृक्ष के कटोर में एक मैना सो रही है । अगर तुम में से कोई उसे पकडना चाहता है तो मेरे साथ चलकर उसे पकड सकता है ।

एक चतुर बालक बोल उठा :-  काका जी !  मै उस मैना को पकडकर पालूंगा । चलिए , मुझे दिखा दीजिए ।

वैध यही तो चाहता था । वह लडके को साथ लेकर वृक्ष के नीचे गया और उँगली से कोटर की ओर इशारा करते हुए बोला :- मैना इसी के भीतर सो रही है । 

लडके ने बिना कोटर की ओर देखें हुए उसके भीतर हाथ डाल दिया और जो कुछ हाथ में आया उसको बाहर निकाल लिया । हाथ बाहर निकालने पर लडके ने बड़े आश्चर्य से देखा कि उसके हाथ में मैना नहीं काले सर्प की गर्दन है । लडका डर गया । उसने झट साँप को फेंक दिया । संयोग की बात , साँप वैध के सिर पर जा गिरा और उसके गले में लिपट गया ।

अब घबराने की बारी वैध की थी । उसनें सर्प को गले से निकाल फेकने का प्रयत्न किया पर सर्प ने उसे डस लिया । सर्प बडा विषैला था । उसके विष से शीघ्र ही वैध की मृत्यु हो गयी । 

वैध ने अपने स्वार्थ के लिए लडके के साथ बुराई करने की बात सोची थी पर लडके की बुराई तो नहीं हुई , बल्कि वैध को उसके बुरे कर्म का फल अवश्य मिल गया  

किसी ने ठीक कहा है जो जस करें, सो तस फल चाखा।

मेहनत का मीठा फल

मेहनत का मीठा फल


एक गाँव में दीनदयाल नाम का एक किसान रहता था , गुजर - बसर के लिए उसके पास कुछ जमीन थी ।जिससे वह मेहनत करके अपना जीवन चला लेता था ।उसका एक लडका था , नाम था लखन । वह बड़ा आलसी प्रवृति का था । काम करना उसे जरा भी नहीं भाता था । दीनदयाल उसे खूब समझाता पर उस पर उसकी बातों का कोई असर नहीं होता था । लडका जब बड़ा हो गया तो दीनदयाल ने सोचा चलो अब बड़ा हो गया है । इसकी शादी कर दी जाए । शायद शादी के बाद इसकी आदत में सुधार आ जायें और एक दिन दीनदयाल ने उसका विवाह कर दिया । 

पत्नी घर आ गयी पर फिर भी लखन की आदत में सुधार न हुआ । अपने इकलौते पुत्र को समझाते - समझाते आखिर एक दिन दीनदयाल ही दुनिया से चल बसा । तब भी लखन की जिन्दगी में कोई सुधार नहीं आया ।उसकी पत्नी भी उसे खूब समझाती पर वह अपनी आदत से बाज न आया । क्योंकि मुफ़्त की रोटियाँ खाने की जो आदत उसे लगी थी। उल्टा वह पत्नी से ही झगड़ा कर बैठता था । 

आखिर एक दिन उसकी पत्नी भी उसे छोड़कर मायके चली गयी । पत्नी के जाने के बाद तो लखन खेतो को बेच - बेचकर कुछ दिन मजे से रहा । अब कुछ खेत ही बच गए जो एक साहूकार के पास गिरवी रखें थे । छुड़ाने के लिए उसके पास पैसे भी न थे । उसकी स्थिति एक दम दयनीय हो गई । तब उसने सोचा चलो कहीं दूसरी जगह जाया जाए। शायद वहां कुछ खाने का मिल जाएँ। इसी बहाने उसनें गाँव छोड़ने का इरादा कर लिया । 

एक दिन वह इसी इरादे से निकल पड़ा । गर्मी का दिन था । चलते - चलते  दोपहर हो गई । भूख के मारे उसका बुरा हाल था । कुछ दूर जाने के पश्चात एक गाँव के पास एक कुटिया बनी हुई थी । वहाँ एक साधु आसान लगाए बैठा था । लखन ने सोचा चलो साधु की कुटिया में ही कुछ विश्राम कर लिया जाएं। ऐसा सोचकर लखन साधु की कुटिया में पहुँच गया । साधु ने एक अजनबी को अपनी कुटिया में आते देखा तो बड़े आदर से बिठाया । कुछ फल खाने को दिया और पूछा , भई इतनी दोपहरी मे कहा जा रहे हो ?  बड़े थके मालूम पडते हो । 

लखन ने अपनी सारी दास्तान साधु से कह सुनाई । साधु समझ गया यह आलसी है और काम से जी चुराता है । साधु ने सोचा इसे कैसे समझाया जायें,  तभी उनकी नज़र कुछ चीटियों पर पड़ी जो फल के छोटे से टुकड़े को ले जा रही थी । अचानक साधु ने मन में विचार आया क्यों न इसी से इसकी समस्या का हल किया जाएं ।

ऐसा सोचकर साधु ने लखन से चीटियों की ओर इशारा करते हुए कहा -:- इन्हें देख रहे हो?  ये क्या कर रही है ? 

लखन ने कहा चीटियाँ कुछ चीजों को ले जा रही हैं।

साधु ने कहा -: जब इतनी छोटी - छोटी चीटियाँ भी बिना मेहनत के नहीं खाते , फिर तुम्हारे पास तो इतना बड़ा शरीर है , जमीन है । यदि तुम मेहनत करोगे तो तुम्हारा जीवन आनंद से बीत सकता है ।

साधु के वचन का उसपर गहरा प्रभाव पड़ा और लखन लौट चला अपने भविष्य को सँवारने को । फिर तो लखन ने गाँव में मेहनत मजदूरी कर कुछ पैसे इकट्ठा कर अपने खेत साहूकार से छुडा  कर सुखमय जीवन बिताने लगा ।तब उसके बदलाव को देखकर उसकी पत्नी भी वापस आ गई । 


सिख -:  मेहनत का फल हमेशा ही मीठा होता है बीना मेहनत के कुछ प्राप्त नहीं होता  मेहनत करने पर उसका फल भी हमें अवश्य मिलता है

Monday, 16 January 2017

विश्वासघात का फल

विश्वासघात का फल

प्राचीन समय की बात है। धर्मपाल सिंह नामक एक व्यक्ति था। वह एक छोटी रियायत का मालिक था। वह बड़े नेक स्वभाव का था । उसे शिकार करने का बड़ा शौक था। वह प्रतिदिन हिरनों का शिकार किया करता था।

एक बार जंगल में उसे काला हिरन दिखाई दिया। उसको मारने के लिए ठाकुर धर्मपाल सिंह ने अपना घोड़ा उसके पीछे दौड़ा दिया। वह हिरन छिपता-छिपाता भागता हुआ दूर निकल गया। ठाकुर धर्मपाल उस हिरन को मारने में असफल रहे।

अँधेरा होने लगा था। ठाकुर को प्यास भी लग रही थी। अब ठाकुर हिरन का पीछा छोड़ पानी की तलाश करने लगा। उसे दूर एक तालाब दिखाई दिया। वह घोड़े से उतरा और घोड़े को वहीं पेड़ से बाँधकर उसनें तालाब का पानी पिया। पानी पीकर ठाकुर धर्मपाल जैसे ही मुड़ा, देखता क्या है कि एक शेर शिघ्रता से उधर ही आ रहा था। शेर के डर से घोड़ा रस्सी तोड़ कर भाग गया था। अब ठाकुर को अपनी जान बचती न देख फौरन पास के पेड़ पर चढ़ गया।

उस पेड़ पर पहले से ही एक भालू बैठा था। ठाकुर उस भालू को देखकर बीच में ही रूक गया। उसनें मन में सोचा पेड़ पर चढता हूँ वह भालू खा जायेगा। यदि पेड़ से नीचे उतरता हूँ , तो शेर जिन्दा नहीं छोडेगा। अब ठाकुर त्रिशंकु की भातिं बीच में ही रूक गया।

ठाकुर को अपने से डरा जान , भालू ने कहा- ऐ भाई तुम मेरी शरण में आये हो ,मेरा फर्ज है कि में तुम्हारी रक्षा करूँ। अत: निडर होकर उपर आ जाओ। 

भालू के वचन सुनकर ठाकुर पेड़ पर ऊपर चढ़ गया। शेर भी आकर पेड़ के नीचे रूक  गया । वह जाने का नाम ही नहीं ले  रहा था। रात हो गयी थी, थका होने के कारण ठाकुर को नींद आने लगी थी। तब भालू ने कहा - ऐसे नीचे गिर जाओगे, अत: निडर होकर मेरी गोद में सो जाओ। ठाकुर ने ऐसा ही किया । शीघ्र ही वह गहरी नींद में सो गया।

ठाकुर को सोया देख शेर ने भालू से कहा- तुमनें शत्रु को अपनी गोद में सुलाया हुआ है। दिन निकलते ही वह तुम्हें मार देगा। अत: तुम इसे नीचे गिरा दो, ताकि मैं उसे मारकर अपनी भूख मिटाकर घर जाऊँ।

तब भालू ने कहा- ऐ शेर जो शरण में आए हुए के साथ विश्वासघात करता है, वह जीवन भर घोर नर्क में जलता है। मैं इसे नीचे नहीं गिराऊंगा । शेर निरूत्तर हो गया।

 थोड़ी देर  बाद ठाकुर नींद से जागें । तब भालू ने कहा ऐ दोस्त अब मैं सो जाऊ तुम सावधान रहना । इतना कहकर भालू सो गया ।

भालू को सोया देखकर शेर ने ठाकुर से कहा  -:  इस भालू पर तुमनें विश्वास कैसे कर लिया । दिन निकलते ही यह तुमकों मार देगा । अत: तुम इसको नीचे गीरा दो ताकि मै इसे खाकर अपने घर जाऊँ ।

ठाकुर ने क्षण भर सोचा शायद शेर ठीक कह रहा है । यह सोच कर भालू को जोर से नीचे गिराया । किन्तु भालू ने शीघ्र ही पेड की शाखाओं को पकड लिया । भालू नीचे गिरने से बच गया  । उसी समय भालू ने कहा - हे पापी , तुने मेरे साथ विश्वासघात किया है । अत: पागल होकर जंगल में भटक।

दिन निकल रहा था । शेर भी पेड के नीचे से चला गया था । ठाकुर धर्मपाल सिंह पागल होकर जंगल में भटकने लगा ।

जब दुसरे दिन ठाकुर अपनी हवेली नहीं गया जब नौकरो ने जंगल में ढूँढना शुरू किया । नौकर देखता क्या है ठाकुर साहिब पागल होकर इधर - उधर भटक रहे है । उन्हें घर लाया गया । ठाकुर की माता ने ऐलान किया जो मेरे पुत्र को ठीक करेगा उसे मुंह मांगा इनाम दिया जायेगा । ठाकुर साहब के ही एक विश्वासपात्र नौकर की लड़की ने यह ऐलान सुना और वह ठाकुर की हवेली में पहुँच गयी ।

लडकी ने ठाकुर की माता से कहा में इन्हें ठीक कर दूंगीं ।इन्हें श्राप लगा है ।  लड़की ने ठाकुर को ठीक करने के लिए पहला उपदेश सुनाया - समुद्र का किनारा हो या गंगा यमुना का संगम यदि इन जगहो पर ब्रह्मा को मार दिया जायें तो वह भी पाप से छुट सकता है ! किन्तु मित्र के साथ विश्वासघात करने वाला मनुष्य पाप से मुक्त नहीं हो सकता ।

इससे ठाकुर का आधा पागलपन दूर हो गया । फिर उस लड़की ने दूसरा उपदेश सुनाया -  जो मित्र के साथ विश्वासघात करता है । वह नीच है और वह तीन जन्म तक घोर नरक में सडता है । इतना सुनते ही ठाकुर धर्मपाल सिंह का पागलपन दूर हो गया और वह अपनी पहली अवस्था में आ गये।


सिख --:  दोस्तो हमें कभी भी किसी भी हालात में दोस्त के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए।

Sunday, 8 January 2017

चमत्कारी अँगूठी

चमत्कारी अँगूठी

यमुना नदी के किनारे रतनपुर गाँव में प्रकाश नाम का एक आदिवासी लडका रहता था। जब वह छोटा था, तभी उसके माता-पिता गुजर गये थे। प्रकाश बहुत होशियार, दयालु और महनती था। पिता की सम्पत्ति के रूप में उसे एक नाव, एक जाल और रहने को एक झोपड़ी ही मिली थीं। वह यमुना नदी में जाल डालता, मछली पकडता और उन्हें शहर में बेचकर अपना खर्च चलाता। अपने काम से थोड़ा समय निकालकर वह थोडा पढ लिख भी लेता था।

एक दिन की बात है। रोज़ की तरह एक शाम जब प्रकाश ने नदी में फैलाया अपना जाल समेटा , तो उसमें मछली तो एक भी नहीं थी, बल्कि एक बड़ा सा कछुआ फँसा हुआ था। कछुए को जाल में फँसा देख उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। इतना बड़ा कछुआ तो उसनें पहले कभी नहीं देखा था। 

कछुए को किनारे की तरफ करके वह घर जाने की तैयारी करने लगा। तभी प्रकाश ने देखा कि कछुआ एक ऋषि के रूप में परिवर्तित हो चुका है। यह देख प्रकाश एकदम डर गया। लेकिन ऋषि ने जो कहा उससे प्रकाश का डर जाता रहा। ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा- प्रकाश में तुम्हारा बहुत आभार मानता हूँ। तुम्हारी वजह से ही आज मै ऐसे श्राप से मुक्त होकर अपने वास्तविक रूप में आ सका हूँ ,तुम्हारे इस उपकार के बदले में तुम्हें कुछ दूँगा। यह कहकर ऋषि ने प्रकाश के हाथ पर एक अँगूठी रख दी और कहा- इस अँगूठी में विषेश गुण है। इसे पहनकर तुम जो काम करोगे उसी में तुम्हें सफलता प्राप्त होगी। इतना कह ऋषि घने जंगल की ओर बढ़ गये।

प्रकाश ने उस अँगूठी को सँभाल कर रख लिया। सोचा- जरूरत पडने पर मैं इस अँगूठी को पहनूँगा। उस वर्ष वर्षा  के मौसम में नदी में खूब बाढ़ आ गई। नदी के किनारे बसे घर और खेत पानी में डूब गये। इस तबाही से फसल बरबाद हो गयी । लोग भूखों मरने लगे। प्रकाश का घर भी पानी में डूब गया। 

प्रकाश ने वह अँगूठी पहनी और अपनी नाव से डूबते लोगों को बचाने लगा। अँगूठी का प्रभाव हुआ । प्रकाश को अपने काम में भरपूर सफलता मिली। उसकी नाव के सहारे आधे से ज्यादा गाँव वाले सुरक्षित स्थान पर पहुँच गये। सब लोगों ने प्रकास का बहुत अहसान माना। अँगूठी के प्रभाव से प्रकाश ने सभी के लिए खाने पीने का प्रबंधन किया। फिर उसनें जंगल से लकड़ी काट-काट कर गाँव वालों के लिए सुन्दर-सुन्दर घरों का निर्माण किया। सभी लोगों के रहने की व्यवस्था हुई। प्रकाश के इस काम से वह गाँव वालों का आँख का तारा बन गया। उसकी लोकप्रियता बढती गई। आसपास के गाँवों में भी उसकी इज्जत होने लगी।

प्रकाश की लोकप्रियता धिरे-धिरे उस इलाके के राजा तक पहुँच गई। उसनें प्रकाश को अपने पास बुलाया। पूछा-; तुमनें अकेले ही सारे गाँव को तबाही से बचाया। उनके लिए घर बनाकर उन्हें फिर से बसाया। इतना सबकुछ तुमनें अकेले कैसे किया?

प्रकाश ने राजा को अँगूठी प्राप्ति की सारी घटना सुना दी और कहा -: इसी अँगूठी के प्रभाव से में यह सारा काम सफलतापूर्वक कर पाया हूँ। अँगूठी के बारे में यह सब सुन राजा सोचने लगा-क्यों न यह अँगूठी मैं प्राप्त कर लूँ और इसे पहनकर पडोसी राजा से युद्ध करूँ,जिससे मुझे विजय मिलेगी और शत्रु सेना की हार होगी।

वह  प्रकाश से बोला- तुम यह अँगूठी मुझे दे दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए मांग लो।

आप तो राजा है सबका भला ही करते है। आप इस अँगूठी को ले लिजिए। यह आपके काम आयेगी। इसके बदले मुझे कुछ नहीं चाहिए। प्रकाश ने कहा।

राजा ने अँगूठी ले ली । कुछ दिन बाद राजा ने अपने पडोसी राज्य पर हमला बोल दिया। भीषण युद्ध हुआ । दोनों तरफ से भयंकर मारकाट हुई। युद्ध में राजा बुरी तरह घायल हो गया। वह बुरी तरह हार भी गया था। उसे प्रकाश पर बहुत गुस्सा आया। उसनें सोचा प्रकाश ने मुझे बेवकूफ बनाया है। यह सोच कर उसनें प्रकाश को कैद खाने में डलवा दिया।

रात को राजा सो रहा था। उसे एक सपना आया। सपने में एक ऋषि राजा से कह रहे थे-राजन, तुमनें बेकसूर प्रकाश को कैद खाने में डालकर अच्छा नहीं किया है। उसे तत्काल छोड़ दो । यह अँगूठी बहुत चमत्कारी है। लेकिन इसका चमत्कार लोगों की भलाई करने मे ही फलता है। प्रकाश ने इस अँगूठी का उपयोग लोगों की सहायता के लिए किया था। इस कारण उसे अपने काम में सफलता मिली। किन्तु तुमनें इसका प्रयोग स्वयं के भले के लिए तथा युद्ध जैसे विनाशकारी कार्य के लिए किया। इसी कारण अँगूठी का प्रभाव नहीं हुआ।

सपना देख राजा हडबडा कर जाग उठा। उसने सपने की बात पर विचार किया। उसे अपनी भूल मालूम हुई। उसनें उसी समय प्रकाश को कैद खाने से इज्जत के साथ अपने पास बुलाया। उसे अँगूठी वापस लोटा दी । दूसरे दिन राजा ने उसे खूब धन देकर उसे विदा किया। अँगूठी लेकर प्रकाश फिर से लोगों की भलाई के कार्यों में जुट गया



सिख-: लोगों की भलाई के लिए किये गए कार्यों में हमेशा सफलता प्राप्त होती है

सच्ची जीत

सच्ची जीत

एक गाँव एक किसान रहता था। उसका नाम था शेरसिंह। शेर जैसा भयंकर और अभिमानी था । वह छोटी सी बात पर बिगड़ कर लड़ाई कर लेता था। गाँव के लोगों से सिधी बात नहीं करता था। न तो वह किसी के घर जाता था और न ही रास्ते में मिलने पर किसी को प्रणाम करता था ।गाँव के किसान भी उसे अहंकारी समझ कर नहीं बोलते थे ।

उसी गाँव में एक नाकू नाम का किसान आकर बस गया। वह बहुत सीधा और भला आदमी था । सबसे नम्रता से बोलता था। सबकी कुछ न कुछ सहायता किया करता था। सभी किसान उसका आदर करते थे और अपने कार्यो में उससे सलाह लिया करते थे।


गाँव के किसानों ने नाकू से कहा-भाई नाकू!  तुम कभी शेरसिंह के घर मत जाना । उससके दूर रहना । वह बहुत झगडालू है 

नाकू ने हंसकर कहा- शेरसिंह ने मुझसे झगड़ा किया तो में उसे मार ही डालूंगा । 

इस पर किसान भी हंस पडे। वे जानते थे नाकू बहुत दयालु है । वह किसी को मारना तो दूर किसी को गाली तक नहीं दे सकता । लेकिन यह बात किसी ने शेर सिंह से कह दी । शेरसिंह क्रोध से लाल हो गया । उसनें उसी दिन नाकू के खेत में अपने बैल छोड़ दिये। बैल बहुत सा खेत चर गये। किन्तु नाकू ने उन्हें चुपचाप खेत से हांक दिया।

अगले दिन शेरसिंह ने नाकू के खेत में जाने वाली पानी की नाली तोड़ दी । पानी बहने लगा । नाकू ने चुपचाप आकर नाली बाँध दी ।इसी प्रकार शेरसिंह बराबर नाकू की हानि करता रहा। किन्तु नाकू ने उसे एक बार भी झगडने का अवसर नहीं दिया।

एक दिन नाकू के यहाँ उसके संबंधी ने जयपुर के मिठे खरबुजे भेजें। नाकू ने सभी किसानों के घर एक एक खरबूजा भेज दिया। लेकिन शेरसिंह ने उसका खरबूजा यह कहकर लौटा दिया कि मैं भीखमंगा नहीं हूँ। मैं दूसरों का दान नहीं लेता।

बरसात आयीं। शेरसिंह एक गाडी अनाज भरकर दूसरे गाँव से आ रहा था ।रास्ते में एक नाले की कीचड में उसकी गाडी फंस गयी। शेरसिंह के बैल दुबले थे। वे गाडी को कीचड से न निकाल सके। जब गाँव में यह खबर पहुँचीं तो सब लोग बोले - शेरसिंह बड़ा दुष्ट है । उसे रात भर नाले में पड़ा रहने दो।

लेकिन नाकू ने अपने बलवान बैल पकड़े ओर नाले की ओर चल पड़ा। लोगों ने उसे रोका और कहा- नाकू!" शेरसिंह ने तुम्हारी बहुत हानि की है। तुम तो कहते थे कि मुझसे लडेगा तो में उसे मार डालूँगा। फिर तुम आज उसकी सहायता करने क्यों जा रहे हो । ? 

नाकू बोला- आज मैं उसे सचमुच मार डालूँगा । तुम लोग सवेरे उसे देखना।

जब शेरसिंह ने नाकू को बैल लेकर अपनी तरफ आते देखा तो गर्व से बोला- तुम अपने बैल लेकर लौट जाओं । मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए।

नाकू ने कहा- तुम्हारे मन में आवे तो गाली दो,मन में आवे तो मुझे मारो , इस समय तुम संकट में हो। तुम्हारी गाड़ी फँसी हैं। और रात होने वाली है । मैं तुम्हारी बात इस समय नहीं मान सकता।

नाकू ने शेरसिंह के बैल खोलकर अपने बैल जोत दिएँ। उसके बलवान बैलों ने गाडी को खींच कर नाले से बाहर कर दिया। शेरसिंह गाडी लेकर घर आ गया। उसका दुष्ट स्वभाव उसी दिन से बदल गया। वह कहता था कि नाकू ने अपने उपकार द्वारा मुझे मार ही दिया। अब में अहंकारी शेरसिंह नहीं रहा । 

सिख-: बुराई को भलाई से जितना ही सच्ची जीत है।

Saturday, 7 January 2017

नेकी का फल

ने की का फल

काफी समय पहले की बात है। किसी नगर का राजा विक्रम सिंह बहुत ही क्रूर था ।प्रजा अपने निर्दयी राजा  से बेहद दुखी थी ।खासकर राजा के सेवक तो राजा के अत्याचारों से तंग आ चुके थे । राजा श्यामू सेवक को तो अक्सर छोटी-छोटी गलतियों पर सजा दिया करता था। फिर भी श्यामू राजा को खुश करने के लिए अधिक से अधिक परिश्रम करता था । एक दिन राजा ने श्यामू को बिना किसी कारण सौ कोडो की सजा सुना दी । अपने इस नरकिय जीवन से श्यामू काफ़ी परेशान हो गया था
क दिन अवसर पाकर वह जंगल में भाग गया। भागते-भागते वह थक गया था । इसीलिए आराम करने के लिए वह एक गुफा में घुस गया ओर लेट गया। कुछ ही समय में उसे नींद आ गयी । तभी एक आवाज़ सुन वह चौककर उठा। उसनें गुफा के बाहर एक शेर को आते हुए देखा। शेर दायाँ पंजा उपर उठाये हुए था । श्यामू समझ गया उसके पंजें में कुछ तकलीफ है । उसनें शेर के पास जाकर उसका पंजा अपने हाथ में उठाकर देखा। शेर के पंजे में एक कांटा चुभा था । उसने कांटे को खींच कर बाहर निकाल दिया । शेर को दर्द से आराम मिल गया । वह श्यामू को कोई हानि पहुचाये बगैर जंगल में चला गया

एक माह के अन्दर ही श्यामू को पकड लिया गया। राजा के दरबार में पेश किया गया। राजा ने उसको भुखे शेर के आगे डाल देने का हुक्म सुना दिया

जब श्यामू को दो दिन पहले पकड़े गये शेर के पिंजरे में डाला गया। तो वहाँ सैकड़ों लोगों की भीड़ थी। शेर दौडकर श्यामू के पास गया ओर उसके पैर चाटने लगा। श्यामू भी शेर को पहचान गया। शेर के इस व्यवहार को देख कर खुश हुआ। यह वहीं शेर था । जिसके पंजे से श्यामू ने कांटा निकाला था । शेर ने श्यामू को पहचान लिया और उसके पैरों को चाटकर उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट की थी।

इस घटना का क्रूर राजा पर गहरा असर हुआ। श्यामू को पिंजरे से बाहर निकाला गया। राजा ने उससे पूछा कि शेर ने उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया। तब श्यामू ने जंगल की सारी घटना राजा को बता दी । घटना सुन राजा में परिवर्तन आ गया।

उसने महसूस किया कि शेर जैसे क्रूर पशु ने भी श्यामू के उपकार के लिए कृतज्ञता प्रकट की है। उसे भी अपने सेवकों की सेवाओं की कद्र करनी चाहिए और प्रजा को ज्यादा से ज्यादा सुखी बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।

उस दिन से राजा नेक और दयालु बन गया । वह अपने सेवको के साथ नम्रता और दया का व्यवहार करने लगा । अब वह सेवकों के कपड़े भोजन और उनकी तनख्वाह का भी ध्यान रखने लगा ।प्रजा को भी सभी करो से मुक्त कर दिया



सिख-: इस कहानी से हमें सिख मिलती है कि हमें परोपकार का बदला परोपकार से ही चुकाना चाहिए

Thursday, 5 January 2017

शब्द और पंख



शब्द और पंख

राजू और राम दोनों अच्छे मित्र थे। दोनों एक साथ खेलते और पढतें थे। एक बार राजू ने अपने मित्र राम को बहुत बुरा-भला कह दिया । लेकिन बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। परन्तु उसकी समझ में नहीं आ रहा था ।। कि वह अपनी गलती का पश्र्ताप कैसे करें। 

इस समाधान के लिए वह अपनी दादीजी के पास गया। और उसनें अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा ताकि उसके मन का भार हल्का हो सके।
दादी ने राजू को खुब सारे पंख देकर कहा तुम पहले इन पंख को बाहर बखेर कर आओ । राजू पंख बखेर कर वापस   आयागया दादी ने उसके आते ही कहा- सुनों राजू अब उन पंख को इकट्ठा करके वापस ले आओ।
राजू बाहर गया और देखा  तो पंख हवा से इधर-उधर उड़ गये थे । उन्हें इकट्ठा करना मुसकिल था । 

राजू खाली हाथ वापस आ गया। दादी ने पूछा पंख  नहीं लाए राजू ने कहा पंख हवा से उड गए है फिर दादी ने समझाया ठिक इसी तरह तुम्हारे शब्दों के साथ होता है।

तुम बड़ी आसानी से किसी को बिना सोचे समझें कह सकते हो लेकिन एक बात कह देने के बाद वो शब्द वापस नहीं लिये जा सकते। ठीक वैसे ही जैसे एक बार बिखरे पंख वापस नहीं समेटे जा सकते ।


सिख- हमें कभी भी किसी से कूछ कहने से पहले सोच विचार कर बोलना  चाहिए।


Wednesday, 4 January 2017

हवा और सूरज








जाड़े का मौसम था। एक आदमी चादर ओढकर पैदल अपने गाँव जा रहा था। उसी समय हवा और सूरज में बहस छिड़ गई। दोनों में से हर एक अपने आप को बड़ा तथा दूसरे को छोटा बताने लगा।

हवा ने डींग मारते हुए कहा- मुझमें अधिक शक्ति हैं में फूँक मारकर कुछ भी उड़ा सकती हूँ।

सूरज ने शांत भाव से कहा - मुझसे बहस मत करो मुझमैं बहुत गरमी हैं । मैं कुछ भी जला कर राख कर सकता हूँ।
दोनों मैं ठन गई परंतु निणर्य कैसे हो ?

तभी दोनों की नज़र उस आदमी पर पड़ी जो चादर ओढ कर रास्ते पर जा रहा था। दोनों में सहमती हुई की जो भी उस राहगीर की चादर उतरवा देगा वही अधिक बलवान होगा

पहले हवा की बारी आई। हवा जोर से बहने लगी। उसने पूरी कोशिश की कि अपनी ताकत से उस आदमी की चादर उतरवा दे।






परंतु उस आदमी ने चादर को और ज्यादा कसकर पकड़ लिया।

हवा इतनी तेज चलने लगी कि आँधी आ गई । परंतु उस आदमी की चादर को न उतरवा सकी।

अब सूरज की बारी आई । सूरज तेजी से चमकने लगा । धीरे-धीरे उसकी धूप में अधिक गरमी आ गई। गरमी लगने से उस आदमी के पसीने छूटने लगे।
वह अधिक गरमी न सह सका विवश होकर उसनें अपनी चादर उतार दी।



सिख-़़़ बच्चों अहंकार बहुत बुरी चीज हैं हमें अहंकार नहीं करना चाहिए कभी भी दूसरे को अपने से कम नहीं समझना चाहिए

आपसी फूट



एक जंगल में तीन बैल रहते थे। तीनों की आपस में गहरी मित्रता थीं ।तीनों बैल हरी-हरी घास चरते साथ-साथ खेल कूदकर अपना जीवन प्रेम पूवर्क बिता रहे थे

उनकी संगठित शक्ति के कारण जंगल का राजा शेर भी उन पर हमला करने से घबराता था

एक  चालाक लोमड़ी की सहायता से शेर ने बैलों में आपस में फूट डलवा दी । एक दिन चालाक लोमड़ी ने एक बैल के कान में जाकर कहा बाकी दोनों बैल तुम्हें नहीं चाहते।




तुम पास वाले जंगल में जा कर इस से भी कहीं अच्छी घास चर सकते हो। बैल लोमड़ी के कहने में आ गया और दोनों बैलों से दूर चला गया।

शेर ने उस बैल को मार डाला और खा गया । फिर शेर ने उन दोनों बैलों में भी लोमड़ी द्वारा फूट पैदा कर दी और एक-एक करके दोनों को मार कर खा गया



सिख-़़़़़ यदि बैल मिलकर  रहती तो शेर उन्हें नहीं मार पाता तो बच्चों हमें संगठित होकर रहना चाहिए





 

Tuesday, 3 January 2017

छुपा खजाना

                                   
एक गाँव में एक किसान रहता था । वह बहुत समझदार और महनती था। उसके चार बेटे थे । वे  चारों बहुत  आलसी थे। एक दिन किसान बीमार हो गया । किसान ने अपने चारों  बेटों को बुलाया। किसान ने उन्हें पास बुलाकर कहा-  "अब में दुनिया से जा रहा हूँ। मेरी कमाई का सारा धन खेत में दबा हैं। चारों भाई कुदालें लेकर खेत की ओर चल पड़े । शाम तक पसीना बहाकर वे  खेत को खोदते रहे।  पर वहाँ धन का नाम भी न था
थककर चारों बैठ  गए और सोचने लगे कि अब कया करें। इतने में उधर से एक बुढा किसान गुजरा  उसने पूछा- "लडकों, कया सोच रहे हो।

लडकों ने बूढ़े किसान को सारी बात बतलाईं। बूढ़ा हँस पड़ा वह कहने लगा- "लडकों, मैं तुम्हारे पिता की बात समझ गया हूँ । तुम कल इस खेत में बीज बो देना। खेत इतना गहरा खोदा गया हैं कि इसमें अच्छी फसल होगी। तुम्हारा  घर धन और अनाज से भर जाएगा।

लडकों ने अब खेत ठीक करके उसमें गेहूँ के बीज बो दिए । समय आने पर इतनी फसल हुई कि उसे बेचकर चारों भाई मालामाल हो गए

इस तरह वे आलसी लडके महनत का महत्व समझ गए कि पिता जी ने सही कहा था कि खेत में खजाना छिपा हैं




सिख-  इस कहानी ने हमें सिखने को मिलता हैं कि महनत से ही सफलता प्राप्त की जा सकती । आलस से नहीं

Monday, 2 January 2017

लालची राजा







पुराने समय की बात है यूनान में मीदास नामक एक राजा राज्य करता था। वह बहुत लोभी था । उसे सोना एकत्र  करने की धुन लगी रहती थी । एक दिन रात्रि के समय एक देवदूत आया उसने राजा से वरदान माँगने को कहा मीदास ने  देवदूत से वरदान माँगा कि में जिस वस्तु को छूँ लूँ वह सोने की हो जाए । देवदूत ने उसे उसकी इच्छा अनुसार वरदान दे दिया ।।। अब वह जिस वस्तु को छूता वह सोने की बन जाती ।  यहाँ तक कि उसका भोजन भी सोने का हो गया ।  कुछ समय बाद उसकी पुत्री राजा के पास आई । जैसे ही मीदास ने अपनी पुत्री को छूआ वह भी सोने की बन गय
अब राजा अपना सिर पिट-पिट कर रोने लगा । देवदूत को राजा मीदास पर दया आ गई । वह प्रकट  होकर  मीदास के पास आया । मीदास ने देवदूत के चरणों में गिरकर क्षमा माँगी और देवदूत से वरदान वापस लेने के लिए प्राथना की । देवदूत ने उस पर दया करके अपना वरदान वापस ले लिया और मीदास से कहा कटोरे में पानी लाकर इन वस्तुओं पर छिडकोगे तो फिर पहले जैसी हो जाँएगी । राजा मीदास ने देवदूत के कहें अनुसार वैसा ही किया । सभी वस्तुएँ तथा उसकी पुत्री पहले जैसी हो गई । यह देखकर मीदास खुश हो गया


सीख़़़----इस कहानी से हमें सीख मिलती हैं कि लालच बहुत बुरी चीज हैं  जितना हमारे पास हैं उसी में खुशी हैं





@ Naeem ahmad

Sunday, 1 January 2017

चालाक बंदर


दो बिऌियॉ एक रोटी का टुकडा़ चुराकर लाई । और अपने भाग के लिए
झगडने लगी । दोनों बटवारे के लिए बंदर के पास गई । बंदर ने  रोटी के
दो टुकडे किये तथा अपने तराजु मे दोनों ओर एक एक टुकडा डाला ।
जिस ओर पलडा भारी होता, बंदर उसी ओर से बडा सा टुकडा काट कर
खा जाता ।इस पृकार करते करते छोटा सा टुकडा बच गया । बंदर उसे भी
यह कहकर खा गया ये मेरी मेहनत का फल है । और भाग गया बिऌिया
निराश देखती रह गयी


सिख| ़़़इस कहानी से हमे सिखना चाहिए कि आपस मे मिल बांटकर
             खाना चाहिए झगडना नही चाहिए इससे अपना ही नुकसान होता
            है